डॉ. हनुमंत यादव
नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के वर्ष 2020-21 बजट का व्यवसायिक संगठनों के प्रतिनिधियों एवं बड़े उद्योगपतियों ने इसकों विकासोन्मुखी बताते हुूए स्वागत किया है। किंतु दूसरी ओर बजट प्रस्तुत होने के बाद शेयर बाजार में इतनी अधिक निराशा रही कि विदेशी संस्थागत निवेशकों की अगुवाई में बिकवाली रही। बाजार का प्रतिनिधित्व करने वाले सेंसैक्स में 988 बिन्दु अर्थात लगभग 1000 बिन्दु की गिरावट दर्ज की गई। 24 अक्टूबर 2008 के बाद अर्थात 11 साल बाद बम्बई शेयर बाजार में सूचीकृत कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सूचकांक सेंसैक्स में यह सबसे बड़ी गिरावट रही। वैसे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल में प्रस्तुत तीन बजटों से भी निवेशकों में निराशा रही थी किन्तु सेंसैक्स में 150 बिन्दु से अधिक गिरावट नहीं रही थी। नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा 5 जुलाई को प्रस्तुत बजट से भी बाजार में भारी निराशा देखी गई थी किंतु सेंसैक्स में मात्र 400 बिन्दु की गिरावट आई थी। 5 जुलाई को सेंसैक्स अच्छे बजट की आशा में बजट पेश होने के पहले 39,901 पर चढ़ा था बजट पेश होने के बाद निराशा लगभग 1000 बिन्दु नीचे जा गिरा। सवाल उठता है कि इस ऐतिहासिक गिरावट के मायने क्या हैं?
भारतीय शेयर निवेशकों को तीन वर्गों में बांटा जाता है, पहला छोटे बड़े घरेलू निवेशक, दूसरा, भारतीय संस्थागत निवेशक एवं तीसरा, विदेशी संस्थागत निवेशक। वर्तमान में विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास लगभग 20 प्रतिशत तथा देशी वित्तीय संस्थानों के पास लगभग 8 प्रतिशत शेयर हैं। शेष 12 प्रतिशत शेयर छोटे बड़े निवेशकों के पास हैं। बम्बई शेयर बाजार में सौदे हेतु चोटी की 100 कंपनियों के 40 प्रतिशत शेयर ही उपलब्ध रहते हैं। चूंकि विदेशी संस्थागत निवेशक बाजार में नियमित सौदों हेतु उपलब्ध शेयरों के लगभग 50 प्रतिशत कब्जा किए हुए हैं इसलिए वे बाजार को हिलाने की ताकत रखते हैं। उनके द्वारा की जाने वाली बिकवाली से बाजार में गिरावट आती है और लिवाली से बाजार में उछाल आता है। कारपोरेट सेक्टर ही नहीं, बल्कि विदेशी संस्थागत निवेशक भी 2007 से गुजरात के मुख्यमंत्री के बड़े प्रशंसक रहे हैं। यही कारण है कि 2014 में जैसे ही चुनावी सर्वेक्षणों ने भाजपा के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत की भविष्यवाणियां करना प्रारंभ किया, शेयर बाजार में उछाल आना प्रारंभ हो गया। बंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक जो जनवरी 2014 में 20 हजार बिन्दु के इर्द-गिर्द चल रहा था मार्च 2014 में उछलकर 21 हजार बिन्दु पार कर गया। लोकसभा चुनाव की मतगणना में भाजपा की जीत की घोषणा होते ही सेंसैक्स 25 हजार बिन्दु पार कर कीर्तिमान बना चुका था। सेंसैक्स ने मई 2018 में 35 हजार तथा मई 2019 में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा के दो तिहाई बहुमत प्राप्त करने का समाचार फैलते ही सेंसैक्स ने 40 हजार बिन्दु पार करने का कीर्तिमान बनाया था। 2014 के 20 हजार की तुलना में आज सेंसैक्स दुगुना होकर 40 हजार हो चुका है। लेकिन विदेशी संस्थागत निवेशकों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के दोनों बजट रास नहीं आए। 1 फरवरी को 11 बजे संसद में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा बजट उद्बोधन प्रारंभ करते समय सेंसैक्स 40,835 पर था उनके बजट उद्बोधन समाप्त होने के बाद 4 बजे सेंसैक्स 40 हजार के मनोवैज्ञानिक बिन्दु से भी नीचे जाकर 39,735 पर बन्द हुआ। उसी प्रकार निफ्टी भी 12 हजार से नीचे गिरकर 11,800 पर बंद हुआ। सरकार द्वारा लाभांश वितरण टैक्स डीडीटी को समाप्त करने एवं आयकर स्ल्ैाब में बड़े बदलाव की घोषणा किए जाने के बावजूद निवेशकों व शेयर कारोबारियों को भारी निराशा हुई जो उन्होंने शेयरों की जोरदार बिकवाली करके व्यक्त किया। इस कारण से सेंसैक्स में 2.43 प्रतिशत तथा निफ्टी में 2.66 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। सेंसैक्स में सूचीकृत 30 कंपनियों में से 24 कंपनियों की शेयरों की भारी बिकवाली रही।पांच दशक पूर्व बम्बई शेयर बाजार दलाल स्ट्रीट एक्सचेंज डीएसई के नाम से जाना जाता था तथा पुराने जमाने के लोग इसे सट्टा बाजार भी कहा करते थे। शेयरों की खरीदारी एवं बिकवाली करने वाले लोग सटोरिये कहलाते थे। अब हम सटोरियों के अनुमानों की बात करते हैं। यह अनुभव किया गया है कि चुनावों में राजनीतिक दलों एवं उनके उम्मीदवारों की जीत हार की संभावनाओं पर सटोरिये बोली लगाते हैं और इनके अनुमान एजेंसियों के ओपिनियन पोल के अनुमानों से कहीं अधिक सही साबित होते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि उसमें सटोरियों का पैसा लगा होता है। वैसे चुनाव व क्रिकेट खेल में सट्टा भारत में अभी भी गैरकानूनी है। यह एक अलग बात है कि सरकार अब तक चुनाव व क्रिकेट का सट्टा व्यवसाय रोक नहीं पाई है।इस बजट में धीरूभाई अंबानी के समय से ही सेंसैक्स में शेयर पूंजी के आधार पर विराजमान रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए बुरी खबर है। जीवन बीमा निगम में 2.01 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश के बाद वर्ष के अंत तक जीवन बीमा निगम न केवल सेंसैक्स में शामिल हो जाएगी बल्कि चोटी पर भी पहुंच जाएगी। सरकार की जीवन बीमा निगम में वर्तमान 75 प्रतिशत शेयरधारिता घटकर 70 प्रतिशत होने के बावजूद जीवन बीमा निगम पर सरकार का पूरा नियंत्रण बना रहेगा। सेंसैक्स में निजी कारपोरेट के स्थान पर सरकारी प्रतिष्ठान का पदस्थ होना सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। 5 जुलाई को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा बजट प्रस्तुत किए जाने के तत्काल बाद शेयर बाजार में गिरावट आई थी जबकि औद्योगिक एवं व्यवसयिक संगठनों के प्रतिनिधियों एवं बड़े उद्योगपतियों ने बजट के स्वागत के बयान दिए थे। इसीलिए उस समय बजट के समीक्षकों द्वारा कहा गया था कि शेयर बाजार में गिरावट का अर्थव्यवस्था की तेजी या सुस्ती से कोई संबंध नहीं रहता, बजट विकासोन्मुखी है इसलिए जीडीपी वृद्धिदर बजट प्रावधानों से पुनरू उठकर 7 प्रतिशत हो जाएगी।जबकि वास्तविकता में जीडीपी और औद्योगिक विकास दर में जून तिमाही से अधिक सितंबर तिमाही में गिरावट रही। अभी 1 फरवरी को प्रस्तुत बजट में वित्तमंत्री ने बजट प्रावधानों से 10 प्रतिशत जीडीपी वृद्धिदर का दावा किया है। वर्तमान परिस्थितियों में उसको काल्पनिक अनुमान भी कहा जा सकता है। यदि सेंसैक्स में एक ही दिन में 988 बिन्दु की गिरावट को देखें तो 5 जुलाई के बजट के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि 2020-21 में औद्योगिक विकास दर 4 प्रतिशत तथा जीडीपी विकास दर 7 प्रतिशत भी पहुंच जाए तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। इसका मायने यह हुआ कि बजट में उल्लिखित लक्ष्यों की प्राप्ति बहुत कठिन दिखाई देती है।
शेयर बाजार में भारी गिरावट के मायने