आशीष व्यास
फरवरी का महीना शुरू होते ही घर-परिवार में पढ़ाई-परीक्षा पर गहन चिंतन होने लगता है। थोड़े से डर-तनाव के बीच, किसी पथ प्रदर्शक की सबसे ज्यादा जरूरत भी इसी दौर में होती है। क्योंकि, यही वह समय भी होता है, जब स्कूल से लेकर कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाओं को मिलाकर, हर साल करोड़ों परीक्षार्थी अपने श्करियर-पाथश् तैयार करते हैं। यदि मध्य प्रदेश पर नजर डालें तो इस साल मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल के अधीन 19 लाख से ज्यादा बच्चे दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं देंगे। इस संख्या में सीबीएसई के छात्र शामिल नहीं हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश पीएससी की राज्य सेवा परीक्षा में भी साढ़े तीन लाख परीक्षार्थी शामिल हुए। अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को भी शामिल किया जाए तो कुल मिलाकर पांच लाख से ज्यादा परीक्षार्थी अलग-अलग परीक्षाओं में प्रतिवर्ष शामिल होते हैं या हो रहे हैं। सच यह भी है कि सफलता-असफलता की उधेड़बुन के बीच कई जिंदगियां सही मार्गदर्शन और प्रशिक्षण के अभाव में लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाती हैं।पथ-प्रदर्शक क्या श्कमालश् कर सकते हैं, इसका जवाब दे रहे हैं निशुल्क पढ़ाकर अब तक 450 बच्चों को आईआईटी में प्रवेश दिलवा चुके सुपर-30 के संचालक आनंद कुमार। चूंकि, वे गणित के शिक्षक हैं इसलिए प्रमाण सहित बताते हैं- श्आज से 70-80 साल पहले रूस के शिक्षकों ने मिलकर एक ग्रुप बनाया था, श्मैथमेटिकल सर्किलश्। अपना-अपना काम खत्म होने के बाद, वे सभी शाम को मोहल्ले या शहर के किसी कोने में, एक तय स्थान पर एकत्र होते। फिर क्लब एक्टिविटी की तरह ही चाय-कॉफी पीते हुए, गणित पर बात करते। पढऩे और जानने की इच्छा रखने वाले बच्चों को बुलाते और उन्हें पढ़ाते। धीरे-धीरे यह उनकी संस्कृति का हिस्सा बन गया और पूरे देश में इस तरह के श्मैथमेटिक्स क्लबश् चलने लगे। छोटी-सी इस पहल से वहां श्ज्ञान-विज्ञान क्रांतिश् आ गई। कुछ समय बाद इंटरनेशनल मैथमेटिकल ओलिंपियाड (आईएमओ) में रूस के बच्चे, दुनियाभर में टॉप करने लगे। ...बात यहीं खत्म नहीं हो रही, परिणाम तो इससे आगे आने वाला था। प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कारों की बारी आई तो भौतिकी और गणित विषय में सबसे ज्यादा नोबेल पाने वाले भी रूस के ही वैज्ञानिक हुए। गर्व का विषय यह भी है कि नोबेल पुरस्कार विजेताओं में से अधिकांश मैथमेटिक्स क्लब से निकले थे। अब एक और रोचक जानकारी। क्लब में शिक्षकों ने बच्चों को पढ़ाने के लिए जो सवाल तैयार किए थे, बाद में वे पुस्तक के रूप में सामने आए। ये पुस्तकें दुनियाभर में इतनी ख्यात हुई कि आईआईटी की प्रवेश परीक्षाओं में शामिल होने वाले विद्यार्थी आज भी इनके सवाल हल करके तैयारी करते हैं। जब रूस में यह कमाल हो सकता है तो भारत जैसे बड़े देश में भी बड़ी क्रांति हो सकती है। यहां हर जिले में कम से कम तीन से पांच आईएएस, आईपीएस अफसर हैं। शिक्षक, डॉक्टर, वैज्ञानिक, बैंक, रेलवे, सेना, पुलिस के अतिरिक्त सैकड़ों विधाओं से जुड़े हजारों जानकार हैं। राजधानी की तो बात ही अलग है। वहां पूरा मंत्रालय ही आईएएस अधिकारियों से भरा हुआ है। आनंद सुझाव देते हैं- श्यदि ये बड़े अधिकारी अपने-अपने विषय के क्लब बना लें। ताकि, इच्छुक बच्चों को जिस क्षेत्र में मार्गदर्शन चाहिए, वे संपर्क कर लें। इसके लिए किसी को नौकरी छोड़कर सेवा करने की जरूरत भी नहीं है, अपनी दिनचर्या में से बस एक-दो घंटे का समय निकालना पड़ेगा। नियमित न भी हो पाए, तो सप्ताह में दो-तीन दिन, कुछ घंटे ही सही। हो सकता है कि सैकड़ों विद्यार्थी भी, सप्ताह में एक-दो घंटे के मार्गदर्शन से ही कोई बड़ी परीक्षा पास कर लें। चिंता का विषय यह भी है कि मप्र के शहरी इलाकों में तो शिक्षक मिल जाते हैं, लेकिन ग्रामीण अंचल के विद्यार्थियों को ऐसे प्रयासों की सबसे ज्यादा जरूरत है। थोड़ी सी कोशिश से यहां भी ग्रामीण प्रतिभाएं आगे आ सकती हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए इंदौर में विद्या दान योजना शुरू की गई थी। इसमें अधिकारी स्कूलों में जाकर पढ़ाते हैं। इसे राष्ट्रीय स्तर पर सराहना भी मिली, लेकिन अब इसकी निरंतरता बनाए रखना बड़ी चुनौती है। अच्छे-बुरे अनुभवों के बीच रतलाम में एक अच्छा प्रयास शुरू हुआ है। कलेक्टर, एसपी, महिला बाल विकास अधिकारी, जिला पंचायत सीईओ सहित सात-आठ अधिकारियों के दल ने मिलकर निचली बस्तियों से 150 प्रतिभावान छात्राओं का चयन किया। पुलिस और सेना में जाने के लिए फिजिकल फिटनेस के साथ, अब लिखित परीक्षा की भी तैयारी करवा रहे हैं। लगभग दो महीने से यह क्रम चल रहा है। तैयारी यह भी है कि जब भी नई नियुक्तियों की आवश्यकता होगी, प्रशासन खुद पहल कर, छात्राओं की भागीदारी सुनिश्चित करवाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि रतलाम की तरह मध्य प्रदेश के प्रत्येक अंचल में कुछ ऐसे नवाचार हों, जो हमेशा व्यावहारिक बने रहें।
जरा सा वक्त दें विषय के जानकार तो संवर जाएं हजारों जिंदगियां