पहली बार उन्हें पता चला कि इस भारत भूमि पर टहनी मुझे मिली थी उस पर से केवल घोड़ी का मुंह ही पखंडाला भी कोई स्थान है। जहाँ निश्चित समय दिखलाई दे रहा था। आगे लटककर दूल्हे को देखना चाह्य सीमा में किसी भी परिस्थिति में पहुँचना अनिवार्य है। कि डाल टूटकर नीचे आ गिरी। अस्थिबाधित होने के क्या? निमंत्रण? कैसी बात कर रहे हैं साहब। बड़े-बड़े कारण आरक्षण का आंशिकलाभ मुझे मिल गया। तीसमारखाओं को भी नहीं मिला फिर ये किस खेत की निरर्थक कैंटीले पेड़ तक गर्वित थे कि चलो जिन्हें मूली। फिर भी तुर्य यह कि भूल गई होगी। बेचारी अकेली कोई देखता तक नहीं था, आज उन परकई चढ़े उल्लुओं शिल्पा क्या-क्या करे? बहन बिग-बॉस में, पिताजी से गठरी अने 'काग-चेष्टा, बको-ध्यानं' की मुद्रा में घंटों अस्वस्थ,माँ घरदेखे कि बाहरा सो अपन से जो बन पड़े से बैठे हैं। कई काँटे उन्हें बार-बार चुभ-चुभकर शिल्पा करेंगे सेवा, हम हैं ना? के प्रति उनके समर्पण के स्तरको जाँच रहे थे। नीचे खड़े वही सोचकर एक पक्षीय अपनत्व समेटे पूछताछ में पुलिस वाले तने पर अनावश्यक डंडे फटकारकर उन्हें पूछते फिरे खंडाला का पता। एक बारगी विचार आया क्या विचलित कर रहे थे। विचलन से उनका बार-बार ध्यान जस्त थी वहाँ से करने की। अपने ही गाँव से करखा देते। भंग हो रहा था। इसी विचलन से फिसलन की स्थिति बन सफाई को छोड़कर सब कुछ तो है वहाँ। लेकिन जो होना गई और हमारे ये आशिक मियाँ धम्म से आ गिरे नौचे। था, हो चुका। मैं भी उनके साथ स्टेशन तक गया। उनकी लगी कम, किंतु चीखे इतना जोर से कि शायद शिल्पा मजाक में सचमुच गंभीरता थी। जब मैंने पूरी ताकत से सांत्वना देने चली आए। लेकिन मुए बैंड वालों को तो उन्हेंलोकल डिब्बे में जबरन घुसेड़ा उन्होंने उफ तक नहीं इनकी आह की जगह दूल्हे का सेहरा ही सहाना लग रहा की। वेखंडला से लौट आए हैं। पता लगते ही मैं उनके घर था। किसी ने का भी है कि- निकले मेरा जनाजा, पहुँचा। हाथ में प्लास्टर चढ़ा था। दर्द से कराह रहे थे। मैंने शहनाइयाँ बजाना। 'धनई काका, मिल लो जाकर पूछा, 'क्या पुलिस ने लाठीचार्ज किया था? उन्होंने नहीं में खंडाला से आए हैं...हमने कह्य। 'क्या?" वे थोड़ा ऊँचा गर्दन हिलाई। 'फिर बोगी में मारपीट हुई?" फिर 'नहीं' में सुनते हैं, बोले- 'भैया एक तो सड़कें खराब, अपर से गर्दन हिली। पूछना बेकार है। शायद बिना टिकट पाकर खटाला बसें, लंबा सफर, जोड़-जोड़ दरद कर रह्य रेलवे वालों ने कूट-काट दिया होगा। मैं उनका चेहरा देख होगा। हमने पास जाकर कह्म-'खटाला नहीं खंडालारहा था। फिर उन्होंने ही कहना प्रारंभ किया- 'यार, क्या खंडाला। एक जगह है। शिल्पा आंटी की शादी में गए थे। शादी थी, कुछना पूछो!सोचा था रसोई परोसेंगे या पत्तल- करवा के आए हैं। नहीं जाते तो होना मुश्किल थी। मामूली दोने उठाने में सहयोग करेंगे। लेकिन नासमिटों ने पास चोट लगी है। सभी मिल रहे है। भीड़ लगी है। आप भी फटकने नहीं दिया। एक पेड़ पर चढ़ा। उस पर पहले से ही मिल आओ।शादी का समाचार सुनाएंगे। जाओ तो...' कईचढ़े हुए थे। ऐसा इंसानों का पेड़ पहली बार देखा। जो -जगदीशज्वलंत
शिल्पाऔरखंडालाःआंखों देखाहाल