राष्ट्रनिर्माताऔरयुगदृष्टा,चाचानेहरू

 कही लाड़-प्यार में आप अपने बच्चों को संस्कारों से दूर तो नहीं कर रहे। संस्कारों से दूर तो नहीं कर रहे। बच्चे की सही परवरिश हो इसके लिए कुछ पंडित नेहरू जी को उनके विचारधारा से विरोधी उन्हेंहमेशा ही थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य बने। 15 वर्ष की ध्यान देनाजका असफल व्यक्तित्व के रूप में प्रतिस्थापित किया हैं पर यव उम्र में पंडितजी ने हेरोस्कूल और ट्रिनिटी कॉलेज में अपनी बात जरूर हैं की जो भी वर्तमान में भारत की ऊमति और शिक्षा पूर्ण की। लोग अपने बच्चों को हर चीज उपलब्ध करवाने की विकास के मूल में उनकी सोच का ही प्रतिफल हैं जिसे चौदह नवंबर बाल दिवस के रूप में मनाने का जिद में उनकी हर जायजवनाजायज मांग को पूरा करदेते भुलाया जाना संभव नहीं हैं। वर्तमान में जो शासकलैनके औचित्य यह है कि पं. जवाहरलाल नेहरू बच्चों को देश हैं, जिससे उसमें हरकीमत पर कुछ भी पाने की प्रवृत्ति का जन्म से पहले अयुगदष्ट ने उज्जवल भारत के निर्माण में का भविष्य मानते थे। उनकी यह अवधारणा सौ फीसदी विकास होता है। ऐसा करते समय माता-पिता यह नहीं जो नींव रखी थी उसीको आधार बनाकरही देश विकसित सत्य है, क्योंकि आज जन्मा शिशु भविष्य में राजनीतिज्ञ, सोचते कि वे अपने बच्चे को सिर्फ लेना सिखा रहे हैं,देना हुआ। 1बनवम्बर बाल दिवस के रूप में मनाने का वैज्ञानिक, लेखक, शिक्षक, चिकित्सक, इंजीनियर कुछ नहीं। अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें। आज औचित्य यह है कि पं. जवाहरलाल नेहरू बच्चों को देश भी बन सकता है। वहां से लौटकर सन्1918 में उन्हें केव्यस्त जीवन में जहां माता-पिता दोनों ही कामकाजी हैं, का भविष्य मानते थे। उनकी यह होमरूल लीगका सचिव चुन लिया गया। कुछसमय बाद बच्चों की हर एक गतिविधि पर पूरा ध्यान दे पाना थोड्न अवधारणा सौ फीसदी सत्य है, ही उन्हें इंडियन नेशनल कांग्रेसका अध्यक्ष बना दिया गया। मुश्किल हो जाता है। चाहे आप काम के सिलसिले में क्योंकि आज जन्मा शिशु भविष्य में इस स्वर्णकाल में उन्होंने देश में पंचवर्षीय योजनाओं को बाहर रहें या घर पर, बच्चों को मनमानी करने से हमेशा राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, लेखक, क्रियान्वित करवाकर जनमानस को राजनीतिक, रोया उनमें यह आदत डालें किवेआपकी सहमति से ही शिक्षक, चिकित्सक, इंजीनियर या सांस्कृतिक और आर्थिक ठहराव के दलदल से बाहर कोई काम करें। तकनीक में घुल रहा है बचपन। आज के मजदूर कुछ भी बने आखिर राष्ट्र निकाला और देश की तरक्की के नए आयाम स्थापित किए। बच्चे सारे काम अंगुलियों के इशारे पर करते हैं मसलन डॉ.अरविन्द निर्माण का भवन इन्ही की नींव पर उन्होंने देश से बाहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को प्लेयर पर गाने सुनना, कम्प्यूटर पर गेम खेलना, टीवी पताका फहराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने देखना, फेसबुक चलाना, व्हाट्स ऐप आदि। आजकल पं. नेहरू प्रौढ़ और युवाओं की तुलना में ज्यादा स्नेह उपनिवेशवाद, नव उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, रंगभेद तो बच्चों का सारा समय इंटरनेट पर ही गुजरता है। वे नहीं और महत्व बच्चों को दिया करते थे। इसी भावना को और अन्य कई प्रकार के भेदभावों को दूर करने के लिए समझते क्या गलत है और क्या सही। वे तो वहीं सीखते है समझते हुए समाज ने उन्हें चाचा नेहरू की उपाधि से विश्व के तमाम देशों को औपनिवेशिक शासन से मुक्त जो उन्हें दिखाई देता है। इसलिए बच्चों के हाथ में विभूषित किया। इसलिए आज भी 14 नवंबर का दिन कराने का श्रेय प्राप्त किया। पंचशील सिद्धांतों को लागू तकनीकी खिलौना देने के साथ ही समझाइश भी बहुत बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। पं. नेहरू यूं तो सारे करवाकर विश्व के देशों में शांति और सद्भावना स्थापित जरूरी है। सबसे महत्वपूर्ण है अपने बच्चे को समझना जान के गुण अपने अंतर्मन में समेटे हुए थे, राष्ट्र निर्माण करने में उनका अपूर्व योगदान था। नेहरूजी राजनीतिक, और उसके नजरिए से चीजों को देखना। अपने बच्चों से की भावना, विश्व बंधुत्व की लालसा, अहिंसा एवं समाजिक एवं आर्थिक चिंतक होने के अतिरिक्त एक उसके काम, दोस्तों आदि के बारे में हमेशा बातें करते रहें। समाजवाद की अविरल धारा बहाने का भी उन्होंने पुरजोर उच्चकोटि के लेखक थे, जिन्होंने दो पुस्तकें (1) कम्युनिकेशन गेप सारी चीजें खराब कर सकता है। जब प्रयास किया था। डिस्कवरी ऑफ इंडिया और (2) ग्लिम्मसेज ऑफ वर्ल्ड आप उनके नजरिए से चीजों को देखेंगे तभी उनकी भाषा सदियों की गुलामी के बाद जब देशको आजादी मिली हिस्ट्री लिखी, जो कि विश्व प्रसिद्ध हैं। पं. नेहरू बच्चों के में उन्हें समझा पाएंगे। बालक देश की बुनियाद हैं, वे तो आजादी के प्रथम दिन से ही देश की बागडोर अपने प्रिय चाचा होने के साथ-साथ एक सफल राजनीतिज्ञ, कच्ची मिटटी जैसे होते हैं उन्हें जैसा मोड़ना चाहो मुड़जाते कर्मठ हाथों में संभाल ली। उनके राजनीतिक हाथ इतने अर्थशास्त्री, चिंतक-साहित्यकार थे। हैं। इसी समय उनमे जैसे संस्कार का बीजारोपण किया मजबूत और सशक्त थे कि भारतीय जनता ने उनकी शासन बच्चों में संस्कारों का विकास हमेशा अपने से बड्नेको जाता हैं वैसे हे उनको निर्माण होता है, इसीलिए ये बच्चे करने की क्षमता को सराहा और पसंद किया। सत्तारूपी देखकर ही होता है इसलिए अपने आचरण को सही रखना नीव हैं देश के विकास की बातें उन्हें सही मार्गदर्शन की देवी ने उनसे प्रधानमंत्री की कुसौं कभी नहीं छौनी, बल्कि भी उतना ही जरूरी है जितना बच्चेपर ध्यान देना। कहते हैं जरुरत हैं। युगानुरूप उनमे तकनिकी ज्ञान की समझ पैदा जिंदगी ने ही उनकादामन छोड़ दिया। वे 13 वर्ष की उम्र में न%अगर ठीक से खाद डाली जाए, तो पौधा बहुत सुंदर करना होगा। प्रेमचंद जैन खा होता है।


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डीसीपी द्वारका जिला एन्टो अल्फोंस ने बताया कि सेक्टर चार की सड़क पर एक पांच सौ रुपये का नोट पड़ा था। इस नोट को देखने के बाद इलाके के लोग उसमें कोरोना वायरस होने की बात करने लगे।
बुध विहार में भी उड़ाई अफवाह दिल्ली के बुध विहार इलाके में शुक्रवार को ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जिसमें एक शख्स इलाके के एक एटीएम से रुपये निकाल कर जा रहा था, तभी अनजाने में उसके रुपये नीचे गिर गए। उसे रुपयों के गिरने का पता ही नहीं चला और वह उन रुपयों को उठाए बिना ऐसे ही चला गया।
ऐसी घटनाएं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में बीते तीन-चार दिनों से बढ़ गई है। वहीं नोट में कोरोना होने की अफवाहों पर विराम देने के लिए पुलिस भी हर भरसक प्रयास कर रही है। दिल्ली पुलिस की तरफ से ऐसी अफवाहों से लोगों को बचने की अपील की गई है। लोगों से अफवाह फैलने पर तत्काल मामले की सूचना पुलिस को देने को कहा गया है।
इस सूचना पर मौके पर पुलिस पहुंच गई और उसने उस नोट को अपने कब्जे में लेकर जांच के लिए भेज दिया है। डीसीपी का कहना है कि शायद किसी के जेब से यह नोट गिर गया था, लेकिन उसे कोरोना वायरस से जोड़कर अफवाह उड़ा दी गई। फिलहाल पूरे मामले की जांच के बाद ही नोट के संबंध में कुछ बताया जा सकता है।
गोली मारो सालों को: हिंसा और घृणा का निर्माण